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Social Upliftment:- Yoga, Sadhna and Tantra



योग या राजधुराज योग, एक गृहस्त के लिए इजात किया गया था। जिसके उपयोग से गृहस्त समाज को और स्वयं का कल्याण कर सके। योग है याम, नियम, आसान, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धरना,समाधी।  साधना अनेक है, अनगिनत है,  अनगिनत सक्तिया है इस ब्रम्हांड में इसलिए अनगिनत साधनायें भी है। साधना सक्तियो को साधने का एक विधान मात्र है। 


योग , साधना और तंत्र को विधि वध किया आदिपुरुष महादेव शंकर ने। इन्हें के द्वारा तांत्रिक विधान का जन्म हुआ। साधना के तीन मार्ग है शक्ति मार्ग, शिव मार्ग और गणेश तंत्र, जैन तंत्र इत्यादि। सभी में एक बात समान है। शक्ति को साधने के बाद उस शक्ति का उपयोग करना होगा। और यंही से आपका समाज सेवा शुरू होता है। इस शक्ति का उपयोग मत्त समाज सेवा के लिए ही होना चाहिए। साधना और शक्ति का सबसे बड़ा रहस्य यह है , की बड़ी शक्ति से गलत काम का दंड बड़ा ही भोगना पड़ता है। इसलिए यह एक खतरे के बात है, इससे जिंदगिया तबाह हो जाती है। 
इसी कारण साधना मात्र धर्म की करने चाहिए। धर्म साधना ही करनी चाहिए। और यही एक योग्य मात्र है। इसी में स्वयं का और समाज का कल्याण निहित है। यह धर्म साधना मात्र आनंद मार्ग संघ में ही इस युग में में श्री श्री अनंदमूर्तिजी के द्वारा प्रतिपादित किया गया है। 
आनंद मार्ग संगठन में संपूर्ण योग, साधना और समाज सेवा सिखाया जाता है।  इसी में योग के आठ मार्च, साधना, और सेवा के विभिंन डिपार्टमेंट है। और तांत्रिक साधना और तांत्रिक योग का भी प्रावधान है। जो  व्यष्टि समाज और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण और भक्ति रखते है उन्हें तांत्रिक साधना और योग सीखने का सौभाग्य प्राप्त होता है। 

योग और तंत्र साधना करने के उप्रान्त मानशिक शक्ति मिलती है। जिसका प्रयोग हमें समाज सेवा में करना ही। 

साधना एक मानसिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है। इसमें मानसिक समर्थ का प्रयोग होता है। इसी समर्थ को बादामी का और उसे समाज के कल्याण में लगाना ही योग और साधना की सफलता है।

समाज सेवा क्या है? मानव सेवा क्या है?



आज हम तरह-तरह के भगवत गीता का श्लोक पढ़ते है, कथा श्रवण करते है लेकिन कितने है जो इस शिक्षा को अपने जीवं में उतारते है। शुन्य कोई नहीं। यंहा तक की हमारे अपने आँखों के सामने होता हुआ अधर्म हम देख कर कायर बने रहते है। 

किसी को भगत सिंह बन कर फंशी में नहीं लटकना है। बस इतनी से बात है कि अपने समर्थ के अनुसार यदि आप कोई समाज में असजीम कार्य या तत्त्व को देखते है तोह उसका विरोध करना है। 

आज यदि हिम् अपना समाजीक कार्य नहीं करेंगे तोह बहुत जल्द मानवता अंधकार में डूब जायेगा और आने वाली पीढ़ी आत्महत्या करके मर जायेगी। और यहींहो रहा है। जिस युवक के पास पैसा नहीं है घर चलने के लिए, पढाई लिखाई करने के लिए, माता पोता की सेवा करने के लिए वो आज खुसी खुसी आत्मजात्य करने को तैयार है। 
रोजगार समाप्त है। हर तरफ भूख मरी, गुंडा राज, मौत , आत्महत्या, दुःख, दर्द इत्यादि है। जिसका समाधान हमें मिलकर निकलना है। सामाजिक कार्य करके। अपना फ़र्ज़ निभाकर। 

माह भयानक संकट आज मानवता पर है। मनुष्यता मानवता आज लगभग नष्ट है। आज कथा कहने वाले बहुत है लेकिन उस सीख पर चलने वाले बहुत कम। 
जो साइंस आज मानवता के विकास में लगनी चाहिए वही समाज को भड़काने और नस्ट करने का हथ्यार बन चूका है। 

आज गरीब के गरीबी का निम्न कारण है।
1. ये सामाजिक कार्य नहीं करते।
2. किसी आध्यात्मिक संगठन से नहीं जुड़े है।
3. समस्या के समाधान के लिए वो सही उपाय और तरीके को नहीं अपनाते ।
 उदहारण:- यदि कंही अन्याय या हिंसक कार्य हो रहा है तोह वंहा पुलिस और  कोर्ट की सहायता ले । सीधे तरीके से समस्या का हल निकले।
4. इन्हें इतना चाहिए की एक गोवेरनेन्ट नौकरी मिल जाये और हर महीने की सैलरी बांध जाए और जिंदगी आराम से चले ।
5. ये अपडेट नहीं होना चाहते, और न ही नए जीवन शैली जो हमारे लिए फायदेमंद हो , नहीं अपनाना चाहते।

इसका एक ही उपाय है योग, साधना और समाज सेवा।
जब तक ये समाज सेवा नहीं करते तब तक गुलाम ही बने रहेंगे। 


याम नियम का कठोरता से पालन होनां चाहिये। साधना और योह का यही मूल उद्देश्य है । पुण्य से समाज का भी फायदा होता है और व्यक्ति का भी । व्यक्ति आध्यात्मिकता में आगे बढ़ता है और समाज को अवसर प्राप्त होता है आगे बढ़ने के लिए।

योग, साधना , तंत्र और समाज सेवा एक सिक्के के दो पहलु है। दोनों को साथ लेकर चलना पड़ता है। तभी साधना कामयाब है। 

अक्सर से देखा गायभाई की साधक अपना पूरा जीवन गुफाओं नें, कंदराओं में , जंगल, पहाड़ो केकिन साधना करके ही निकल देते है। और समाज सेवा उनके सब्दकोष में नहीं है। उन्हें मानव सेवा का। ज्ञान नहीं दिया जाता।

जबकि यह एक तथ्य है कि मानव सेवा के बिना साधना विफल है। साधना हम आज किये और सेवा कल ऐसा नहीं चलेगा। साधना भी आज करनी है और सेवा भी , और तभी साधना हो पाती है। 

साधना में केवल  धर्म साधना ही उचित है जिसमे मुक्ति और मोक्ष रास्ता प्रसस्त हो सके। मनुष्य के जीवन का एक ही लक्ष्य है मुक्ति या मोक्ष लाभ। 

जिसमे केवल आनंद मार्ग संगठन की साधना ही धर्म साधना करने योग्य है। 



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संक्षेप अर्थ:-  समाज में और व्यक्तिगत रूप से योग, साधना और समाज की सेवा करके ही तुम और में प्रगति कर सकते है और कोई उपाय नहीं है। 


यदि आप को मेरा विचार और लेख पसंद आया और कोई प्रश्न और विचार और कोई भूल हुई हो तोह कमेंट में  लिखना न भूले और हमें सूचित करे। यह लेख पढ़ने का आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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