योग और साधना दोनों एक दूसरे के पूरक है। इसे राजाधिराज योग भी कहते है। दरअशल साधना योग का ही अंग है। योग अर्थात अस्टांग योग। इस अस्टांग योग में आठ भागो में विभाजित किया है। वे है याम-नियम , आसान , प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यम, धरना और समाधी। अब साधना क्या है ? साधना एक वैज्ञानिक पद्धति है जिसमे हम अपने मन को एकाग्र करके इस्वर के साथ एक कर देते है। मात्रा योग और साधना से सारे बीमारी दूर हो जाती है। योग इस तरह से भी काम करता है की इसे निरंतर अभ्यास करने से एक हार्मोन
मस्तिक्स जो आपको आनंद विभोर कर देता है। इस योग के आठ अंग है। साधना एक तरह से एक क्रिया है जिसमे आप अपने पूरी ऊर्जा को एकत्रित कर एक धरा में प्रवाह करते है। यह योग कुंडलिनी जागरण का काम करती है। जो प्राकृतिक शक्ति हम्मे सोई हुई है उसे जगाने का काम करती है। इसमें शारीरिक , मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति होता है। लेकिन जब आध्यात्मि प्रगति होती है तब बाकि दो क्षेत्रो में प्रगति रुक जाती है। और ऐसा थेनो के साथ होता है। अब हम इस योग साधना हो विस्तार में जानते है।
. याम-नियम - याम और नियम ये दोनों पाँच है।
१. याम : - अहिंशा , सत्य , अस्तेय , ब्रमचर्य, अपरिग्रह। इन पाँच आंतरिक अनुशाशन का पालन करना पड़ता है।
अहिंशा - अहिंशा का सही अर्थ है के किसी से भी बेकार में पहले पहले झगड़ा और किसी का बुरा नहीं। इसका यह भी अर्थ है किसी का भी पहले वाणी , कर्मा और विचार से अहित नहीं करना है। किसी भी जीव, जंतु अवं प्राणी को चोट नहीं पहुचनी है।
सत्य - इसे हमें गहराई से समझना होगा। सत्य का अर्थ है हमेशा वही करना होगा जिसमे सबका हिट हो न की केवल अपना। वही बोलना होगा जिससे सब का हित हो। सत्य अर्थात भगवत धर्म का करना।
अस्तेय - इसका अर्थ है कभी भी चोरी न करना , बिना इज़ाज़त के किसी न लेना न लेना , किसी के हक़ वास्तु या पैसा न देना , सर्कार और का मुफ्त में सेवा इस्तेमाल करना , ये सब चोरी में शामिल है। अपने हक़ की वास्तु न लेना भी चोरी में शामिल है।
ब्रम्हचर्य - इसका सीधा सा अर्थ यह है की सदैव खुद को इस्वर के भाव में लिप्त रखना। इसके लिए आप जो भी करे। ब्रम्हचर्य का गलत मतलब यह भी निकल जाता है की विवाह न करना जो की बिलकुल गलत है।
अपरिग्रह - इसका यह अर्थ है की किसी भी जागतिक वास्तु से लगाव न रखना। हर वास्तु केवल खुद के प्रगति उपयोग करना ही अपरिग्रह है।
२. नियम :शौच , संतोष , तपः , स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान।
शौच - इसका मतलब है की शरीर और मन को साफ़ अवं स्वछ रखना। शरीर और वातावरण को साफ़ आसानी से रखा जा सकता है लेकिन मन को साफ़ रखना मुश्किल है। मन में बुरे विचारो को आने से रोकना और किसी के बारे में सोचना हमारे लिए मुश्किल है। इसके लिए हमें सतत सेवा करनी होगी होगी।
संतोष - हमारे किये गए पुरुषार्थ का फल बिना बिना संकोच के अपनाना चाहिए। और अधिक फल के लिए मेहनत करनी चाहिए।
तपः - सदैव तपस्या करनी और जान सेवा में लगे रहना।
स्वाध्याय - आध्यात्मिक ज्ञान का अर्ज करते रहना चाहिए।
ईश्वर प्रणिधान - खुद को इस्वर के भाव में लिप्त रखना और अपने ईस्ट को याद करते रहना।
. याम-नियम - याम और नियम ये दोनों पाँच है।
१. याम : - अहिंशा , सत्य , अस्तेय , ब्रमचर्य, अपरिग्रह। इन पाँच आंतरिक अनुशाशन का पालन करना पड़ता है।
सत्य - इसे हमें गहराई से समझना होगा। सत्य का अर्थ है हमेशा वही करना होगा जिसमे सबका हिट हो न की केवल अपना। वही बोलना होगा जिससे सब का हित हो। सत्य अर्थात भगवत धर्म का करना।
अस्तेय - इसका अर्थ है कभी भी चोरी न करना , बिना इज़ाज़त के किसी न लेना न लेना , किसी के हक़ वास्तु या पैसा न देना , सर्कार और का मुफ्त में सेवा इस्तेमाल करना , ये सब चोरी में शामिल है। अपने हक़ की वास्तु न लेना भी चोरी में शामिल है।
ब्रम्हचर्य - इसका सीधा सा अर्थ यह है की सदैव खुद को इस्वर के भाव में लिप्त रखना। इसके लिए आप जो भी करे। ब्रम्हचर्य का गलत मतलब यह भी निकल जाता है की विवाह न करना जो की बिलकुल गलत है।
अपरिग्रह - इसका यह अर्थ है की किसी भी जागतिक वास्तु से लगाव न रखना। हर वास्तु केवल खुद के प्रगति उपयोग करना ही अपरिग्रह है।
२. नियम :शौच , संतोष , तपः , स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान।
शौच - इसका मतलब है की शरीर और मन को साफ़ अवं स्वछ रखना। शरीर और वातावरण को साफ़ आसानी से रखा जा सकता है लेकिन मन को साफ़ रखना मुश्किल है। मन में बुरे विचारो को आने से रोकना और किसी के बारे में सोचना हमारे लिए मुश्किल है। इसके लिए हमें सतत सेवा करनी होगी होगी।
संतोष - हमारे किये गए पुरुषार्थ का फल बिना बिना संकोच के अपनाना चाहिए। और अधिक फल के लिए मेहनत करनी चाहिए।
तपः - सदैव तपस्या करनी और जान सेवा में लगे रहना।
स्वाध्याय - आध्यात्मिक ज्ञान का अर्ज करते रहना चाहिए।
ईश्वर प्रणिधान - खुद को इस्वर के भाव में लिप्त रखना और अपने ईस्ट को याद करते रहना।
३ आसान - आसान करने से सरीर में लचक और फुर्ती। इससे सरीर देर तक एक आसान में बैठने में अभ्यास मिलता है। और इससे सरीर भी स्वाथ रहता है। भारतीय इतिहास में आसान की दोई गिनती नहीं है। लेकिन कुछ ऐसा आसान है जिसे करने से साधना में विशेष लाभ मिलता है। वो है
१ सिद्धासन
२. पद्मासन
३ गुप्तासन
४. स्वस्तिकासन
५. सुखासन
६. वज्रासन
४ प्राणायाम : प्राणायाम का आपको आपके साधना में विशेष लाभ देता है। इससे आपका मन तुरंत एकाग्रह हो जाट है। विशेष विधि है जिशे केवल सन्यासी ही सिख सकता है। परंतु यह रामदेव के प्राणायाम से बिलकुल अलग है। इसकी विशेषता है की यह पुरे ब्रम्हांड से ऊर्जा जो एकत्रिक करके आपके सरीर में प्रवाहित करता है।
५ प्रत्याहार : भोजन ३ प्रकार के होते है। राजसिक , तामसिक, और सात्विक। तामसिक में आते है मुर्गा, मटन , अण्डआ , मदीरा आदि। राजसिक में चाय, कॉफ़ी, और सरे मिलावटी पेय पदार्थ। सात्विक में आते है
फल, दही, और सरे आचि चीजे। सात्विक आहार ही मात्रा लेना है क्योंकि इससे आपका मन और सरीर स्वस्थ रहता है और मन में कोई हीन भावना है।
६ ध्यम ; इसके बारे में थोड़ा काम कहूँ गा , ऊर्जा को एकत्रिक करके एक दिशा में प्रवाहित प्रवाहित करना ही ध्यम है। बाकि अनेको साइट इस विषय पर।
७ धरना : त्राटक और धरना एक जैसे है इसमें मन को एकाग्र करना सिखया जाता है। किसी विषय में अपने मन को एकार्ग करने से साधना में मदद मिलते है।
८ समाधी : समाधी साधना का चरम है। जब आपके सरे चक्र खुल जायेंगे तब आपका मन पर ईश्वर की चाय पड़ेगी और तब आपका मन अपने आप समाधी में चला जायेगा।
१ सिद्धासन
२. पद्मासन
३ गुप्तासन
४. स्वस्तिकासन
५. सुखासन
६. वज्रासन
४ प्राणायाम : प्राणायाम का आपको आपके साधना में विशेष लाभ देता है। इससे आपका मन तुरंत एकाग्रह हो जाट है। विशेष विधि है जिशे केवल सन्यासी ही सिख सकता है। परंतु यह रामदेव के प्राणायाम से बिलकुल अलग है। इसकी विशेषता है की यह पुरे ब्रम्हांड से ऊर्जा जो एकत्रिक करके आपके सरीर में प्रवाहित करता है।
५ प्रत्याहार : भोजन ३ प्रकार के होते है। राजसिक , तामसिक, और सात्विक। तामसिक में आते है मुर्गा, मटन , अण्डआ , मदीरा आदि। राजसिक में चाय, कॉफ़ी, और सरे मिलावटी पेय पदार्थ। सात्विक में आते है
फल, दही, और सरे आचि चीजे। सात्विक आहार ही मात्रा लेना है क्योंकि इससे आपका मन और सरीर स्वस्थ रहता है और मन में कोई हीन भावना है।
६ ध्यम ; इसके बारे में थोड़ा काम कहूँ गा , ऊर्जा को एकत्रिक करके एक दिशा में प्रवाहित प्रवाहित करना ही ध्यम है। बाकि अनेको साइट इस विषय पर।
७ धरना : त्राटक और धरना एक जैसे है इसमें मन को एकाग्र करना सिखया जाता है। किसी विषय में अपने मन को एकार्ग करने से साधना में मदद मिलते है।
८ समाधी : समाधी साधना का चरम है। जब आपके सरे चक्र खुल जायेंगे तब आपका मन पर ईश्वर की चाय पड़ेगी और तब आपका मन अपने आप समाधी में चला जायेगा।
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२. AMPS.ORG
9 Comments
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DeleteHello everyone
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ReplyDeleteGood
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ReplyDeletePlease keep making such poats
ReplyDeleteYoga and sadhna
ReplyDeleteGood stuff
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